खयाली पुलाव तो ऐसे पकते,
जैसे बीरवल की खिचडी,
मन में आई बात जो ठहरी,
साफ दिखे हो खुली सी खिडकी।
मन के उस एक झरोंखे से,
निकले वो किरणें एक-एक कर,
दिखे दिमाग पटल पर ऐसे,
जैसे पर्दे पर प्रोजेक्टर।
कहीं पुरानी याद हो ताजा,
कई नए विचार भी आएं,
कभी-कभी तो आए गुस्सा,
पल भर में दिल खुश हो जाए।
पल भर में इक दुःख की लहर सी,
दौड सनसनी फैला जाए,
फिर कुछ ऐसा हो जाए,
कि मन कुछ समझ न पाए।
जैसे ही कुछ अच्छा होता,
बन्द हो जाती किस्मत की खिडकी,
खट आंखे खुलती तब दिखता,
खयाली पुलाव बीरबल की खिचडी।
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(Khayali Pulao)
https://www.youtube.com/watch?v=fKHwVE0o8JE
खयाली पुलाव – एक हिंदी कविता
इस कविता के माध्यम से एक जीवन्त उदाहरण पेश करनें की कोशिश की गयी है। किसी भी खयाल में जीना कितना आसान है। और उससे भी ज्यादा आसान है उन खयालों का ताना बाना बुनना। खयालों को जब भी अमल में लाने का प्रयास किया जाता है, वास्तविक रूप मेहनत का समझ में आता है।
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