पानी सरपत से सरकत जाए रे।
ठंडी हवा का झोंका रोंवा कंपकंपाए रे,
पानी सरपत से सरकत जाए रे।
दूर तलक देखो कोई आश नहींं है,
सूखा सा पडा है कोई घास नहीं है,
मन से मैं बोलूं तो विश्वास नहीं है,
शरद की ये वारिस से मन थिरकत जाए रे,
पानी सरपत से सरकत जाए रे।
हर तरफ देखो अब दिखेगी हरियाली,
शरद की वारिस से दौडेगी खुशहाली,
देश में फिर सब आशंक मुक्त होंगे,पर
देश का बच्चा बच्चा शनकत जाए रे,
पानी सरपत से सरकत जाए रे।
–>सम्पूर्ण कविता सूची<–
(Sharad Bakhani)
हिंदी कविता
इस कविता के माध्यम से सूखे के बाद पडनें वाले शरद ऋतु का वर्णन किया गया है। शरद ऋतु में सरपत की झाड में पडनें वाली वर्षा की बूदों से एवं उनमें से छू कर निकलनें वाली हवाओं से जो ठण्डक का एहसास होता है वह पूरे शरीर में शिहरन पैदा कर देता है। शरीर का रोम रोम कांप उठता है।
एक तो सूखे के मंजर को देखते हुए जो कप कपी देने वाले एहसास को महसूस किया गया था उसमें यह शिहरन बहुत ही आराम पहुंचाने वाली है।
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