#21-दृढ बनो
निकला था अलि भ्रमर में, अंजानें मंजिल की खोज, दिल में आश लगाए भटके, मन में मंजिल पानें की सोंच, राह भटकते रात हुई वह, लौट पडे निज गृह को तेज, स्वप्न में भी मंजिल को ढूंढे, निकल पडे गृह को छोड, निकला था अनि भ्रमर में, अंजाने मंजिल की खोज। आश न छोडे चाह […]