#21-दृढ बनो
निकला था अलि भ्रमर में, अंजानें मंजिल की खोज, दिल में आश लगाए भटके, मन में मंजिल पानें की सोंच, राह भटकते रात हुई वह, लौट पडे निज गृह को…
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January 7, 2018
निकला था अलि भ्रमर में, अंजानें मंजिल की खोज, दिल में आश लगाए भटके, मन में मंजिल पानें की सोंच, राह भटकते रात हुई वह, लौट पडे निज गृह को…
निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,सूखे की मार भारी है,पकी फसल पर वारिस पत्थर,और भी प्रलयंकारी है।वह झूल रहा है फंदो से,रब रूठ गया है बंदो से,ऐ रब अब तू सुन ले…
इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली। रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है, सहमी इंसानियत हर पल दूजे से, न पता किधर से रोष…