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Month: January 2018

#21-दृढ बनो

निकला था अलि भ्रमर में,
अंजानें मंजिल की खोज,
दिल में आश लगाए भटके,
मन में मंजिल पानें की सोंच,
राह भटकते रात हुई वह,
लौट पडे निज गृह को तेज,
स्वप्न में भी मंजिल को ढूंढे,
निकल पडे गृह को छोड,
निकला था अनि भ्रमर में,
अंजाने मंजिल की खोज।

आश न छोडे चाह न छोडे,
निकले दिन प्रति दिन वह,
बिना राह के मंजिल ढूंढे,
पूंछे मंजिल पुष्पों से वह,
राह के हर पुष्प से करे,
मंजिल की कडी जांच,
तोडे न दिल की आश,
दृढता की जरूरत आज,

शुरू करो जिस को,
अन्त करो पाओ परिणाम,
सभी मुश्किलों से लडो,
निकल जाए चाहे तुम्हरे प्राण।


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दृढता की जरूरत आज

इस हिन्दी कविता के माध्यम से आज के समय में दृढता की जरूरत को दर्शाया गया है। इस दृढता के लिए उदाहरण दिया गया है एक भौंरे (भ्रमर) का जो प्रतिदिन हर पुष्प से आलिंगन करता सा दिखता है जिसमें कल्पना की गयी है कि वह भौंरा प्रतिदिन अपने आशियाने से निकल कर प्रत्येक पुष्प से जिससे मिलता है बडे ही धीर भाव से अपनी मंजिल के बारे में पूंछता है।

Hindi Poem on consistent

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#20.किसान और प्रकृति

निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,
सूखे की मार भारी है,
पकी फसल पर वारिस पत्थर,
और भी प्रलयंकारी है।

वह झूल रहा है फंदो से,
रब रूठ गया है बंदो से,
ऐ रब अब तू सुन ले तेरे,
बंदो पर संकट भारी है।

चिडियों की चहक भी मन्द हुई,
मुर्गों की बांग भी झूठी है,
कहीं अति गर्मी बेमौसम बारिस,
देखो प्रकृति हमसे रूठी है।

काट डाले वृक्ष जंगल,
दूषित कर दी नदियां सारी,
घट घट बालू खोद निकाले,
इति नदियां प्रलयंकारी।

खोद खोद पाषाण कूट से,
मघों को क्रोध दिलाया है,
कहीं अति वर्षा दे कर इननें,
कहीं बूंदो को तरसाया है ।

सरकार की नीति बेअसर,
बूंदो की मारा मारी है,
निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,
सूखे की मार भारी है।

 


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on farmer and nature

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#19.हैप्पी होली

इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली।

रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है,
सहमी इंसानियत हर पल दूजे से,
न पता किधर से रोष ठगे,
इक विकास न जाने कैसे,
कारण दूजे का आक्रोश जगे,
जो भाव रंगों में दिखते थे,
कभी नभ रंग कर,
चेहरे में वो दुःभाव,
आंखे रोष से नीली पीली सी हैं,
सुख झलकता था जिनमें कभी,
पलकें भीगी भीगी सी हैं
रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है।

होली की कैसे शुभकामनाएं बटोर लूँ,
फीके रंग की बेमन वाणी भला कैसे टटोल लूं,
मन जो विश्वास भरा था टूट गया,
वह वर्षों का साथ अचानक छूट गया,
मन जो भाव भरे थे लुट से गये,
सुख झलकता था जिनमें कभी,
पलकें भीगी भीगी सी हैं,
रंगों की वह होली अब फीकी फीकी सी है।

भविष्य में होली के एण्ड्रयड ऐप होंगे,
लोग रंग विरंगी तस्वीरें भेजेंगे एक दूजे को,
गुजिया पपडी की जगह चाकलेट खाएंगे वो,
मुस्कुराएंगे चले जाएंगे यू हि न कहेंगे हैप्पी होली,
इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on happy holi

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