Skip to content

#24-RET KE DARIYA

मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।
जग में यूँ हि राह चलूं,
विश्वास समय के साथ चलूं,
पर समय का पहिया आगे काफी,
न पाऊँ दिन रात चलूँ,
मैं भूल बिसर कर चलता जाऊँ,
सब कुछ खोऊँ कुछ न पाऊँ,
अस्त व्यस्त कर दे जीवन,
ऐसी चली ये आँधी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।

मैं मूरख अज्ञान गगन में,
विम्ब विलोकत वक्त बिताऊँ,
आगे बढनें की चाह अनोखी,
पर पीछे ही रह जाऊँ,
दुनिया में सब हास उडाएं,
शांत रहूँ कुछ कर न पाऊँ,
हास विलास पर हित पर,
फिर भी ढूंढू बैसाखी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।

भूल गया मैं जग में सब से
अलग थलग सा रहता हूँ,
भुला दिया मुझे जग में सब,
खुद से बस ये कहता हूँ,
समय का धारा बहती निश छण,
मैं अलग सा बहता हूँ,
पूरब पश्चिम का मेल अनोखा,
फिर भी मन है बैरागी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।
प्रभु मात पिता के चरणों में रहता हूँ,


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on Life time

Poem on life time in hindi

Facebook link

बखानी हिन्दी कविता के फेसबुक पेज को पसंद और अनुसरण (Like and follow) जरूर करें । इसके लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें-

Bakhani, मेरे दिल की आवाज – मेरी कलम collection of Hindi Kavita

Youtube chanel link

Like and subscribe Youtube Chanel

Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on Life time

Kavita on Life time in hindi

Total Page Visits: 1391 - Today Page Visits: 1
Published inhindi poems

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Get 30% off your first purchase

X