#23-बुंदेलखण्ड

न देखी किसी ने दशा वो मेरी,
बस हंसते रहे मुस्कुराते रहे,
मेरी दशा को उथला दिखा,
जग को धता बस दिखाते रहे,
दिखता है जो क्या बस वो सच है,
जो न दिखे वो भी तो सच है,
सूखा पडा न जल की बूद है,
अस्तित्व अपना अब खो रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

इतिहास मेरा गोरवान्वित करे,
धडकन बन सम्मानित करे,
कभी सूरज अंगारे बरसाए,
कभी इन्द्र बज्र प्रहार करे,
पहले मैं खुशहाल था अब,
मची हर तरफ हा-हा कार,
मेरा किसान है झूल रहा,
हर घर कोना अब चीख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

चीरा सीना सोना जिनने उगलाया,
मुझको सोने की चिडिया था कभी कहलाया,
वो रो रहे हैं बिलख रहे हैं,
मानस तप सा सुलग रहे हैं,
लूट लूट पाषाण रज नद से,
मानष जन को दे तडप रहे हैं,
हर पल हर जन बस अब देखो,
बूंद बूंद को बिलख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

मैं खामोश हूँ थोडा बेहोस हूँ,
अपनी हालात में थोडा मदहोस हूँ,
मैं तो हंसता हुआ एक प्रतिविम्ब हूँ,
मन में उठते सवालों का एक विम्ब हूँ,
खामोस हूँ तो नहीं क्रोध में,
मुस्कुराऊँ अगर तो नहीं सुख में,
मुस्कुरा रहा हूँ नहीं चीख रहा,
दुनिया से लडना मैं अब भी सीख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on Bundelkhand

Poem on Bundelkhand in hindi

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