फतवे लगते हैं तो लगनें दो ।
मुझे गुरेज नहीं ठेकेदारों से,
नहीं परवाह मुझे कौम किरदारों से,
मैं हिन्दुत्व पर भी चाहे गर्व न करूं,
पर परहेज नहीं भारत जय के नारों से।
कुछ जन्म से कहते खुद को वासी,
कुछ कहते वासी खुद को इच्छा से,
मैं दिल से भारतवासी हूं,
दिल गूंजता है भारत के जयकारों से।
सीखा है आदर सम्मान की भाषा,
छोंड धर्म का चश्मा सब सींखेंगे है आशा,
निज हित निज स्वारथ और लालच,
बच के रहना दिल के इन गद्दारों से।
ऐ जमी तू जल मुझे चलनें से परहेज नहीं,
गर जलेगी दुनिया संग मुझे जलनें से परहेज नहीं,
आजादी को जाति धर्म की खूब लडी लडाई,
खूब सीख मिली है देश की सरकारों से।
बहन बेटी जब जलती मरतीं दरिंदे खुले आम घूमते हैं,
घर बैठे सारे प्रबुद्धजन देख के टीवी बस उफ करते हैं,
बेटी को शिक्षा दे दो चंगा बेटों को मत वंचित करो,
गर बेटा दरिंदा है तो चुनवा दो उन्हें दीवारों से ।
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हिंदी कविता का अमर उजाला काव्य में प्रकाशन
कविता अमर उजाला के काव्य सेक्शन में चयनित की गयी है। जिसका लिंक है https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/bakhani-hindi-hindustan “हिन्दुस्तान ” पर हिन्दी कविता
Hindi poem on hindustan
This poem on hindustan explains the thought about the current situation arises here in country INDIA. Hindustan is now on trouble. everyone.
इस हिंदी कविता के माध्यम से मजहबी भेदभावों को परे रख देश को सर्वोच्च प्राथमिकता देनें की बात कहनें का एक प्रयास किया गया है ।
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