#57 एहसास
लफ्जों का दौर बीत गया, रह गया एहसास, छोंड भविष्य की अविरल चिन्ता, और करिये इक एहसास । बिना धूल की धूप का, बिन पहिए की रोड का, बिना आफिस…
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लफ्जों का दौर बीत गया, रह गया एहसास, छोंड भविष्य की अविरल चिन्ता, और करिये इक एहसास । बिना धूल की धूप का, बिन पहिए की रोड का, बिना आफिस…
जग आश लगाए देख रहा, सायद कोई इक राह मिले, जनता कर्फ्यू व लाकडाउन से, कोरोना से सब बच निकले, पर हम उन्मत्त चूर नशे में, क्यों भला कोई अपील…
मन का लहरी सज संवर कर, स्वच्छन्द जहां विचरण करता, सार्वभौम जो सत्य जहां पर, जाने कौन कब कैसे तरता, चलते फिरते खडे खडे यूं, बातों बातों अन्तिम मंजिल…
काश्मीर से हटी क्या धारा तीन सौ सत्तर, भडकाकर लोगों को दिल्ली पर बरसा दिया पत्थर, जमाना बेबाक निष्ठुर ढंग से देखता रह गया, और जमाने ने जमाने को आइना…
क्यों स्मृति यूँ सताती। जग में न कोई वैरी दूजा, पल में रुलाती पल में हसाती, पल में मजबूर सोंचनें को करती, हर पल यह एहसास जताती, क्यों स्मृति यूं…