इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली।
रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है,
सहमी इंसानियत हर पल दूजे से,
न पता किधर से रोष ठगे,
इक विकास न जाने कैसे,
कारण दूजे का आक्रोश जगे,
जो भाव रंगों में दिखते थे,
कभी नभ रंग कर,
चेहरे में वो दुःभाव,
आंखे रोष से नीली पीली सी हैं,
सुख झलकता था जिनमें कभी,
पलकें भीगी भीगी सी हैं
रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है।
होली की कैसे शुभकामनाएं बटोर लूँ,
फीके रंग की बेमन वाणी भला कैसे टटोल लूं,
मन जो विश्वास भरा था टूट गया,
वह वर्षों का साथ अचानक छूट गया,
मन जो भाव भरे थे लुट से गये,
सुख झलकता था जिनमें कभी,
पलकें भीगी भीगी सी हैं,
रंगों की वह होली अब फीकी फीकी सी है।
भविष्य में होली के एण्ड्रयड ऐप होंगे,
लोग रंग विरंगी तस्वीरें भेजेंगे एक दूजे को,
गुजिया पपडी की जगह चाकलेट खाएंगे वो,
मुस्कुराएंगे चले जाएंगे यू हि न कहेंगे हैप्पी होली,
इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली।
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