#20.किसान और प्रकृति
निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,सूखे की मार भारी है,पकी फसल पर वारिस पत्थर,और भी प्रलयंकारी है।वह झूल रहा है फंदो से,रब रूठ गया है बंदो से,ऐ रब अब तू सुन ले…
निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,सूखे की मार भारी है,पकी फसल पर वारिस पत्थर,और भी प्रलयंकारी है।वह झूल रहा है फंदो से,रब रूठ गया है बंदो से,ऐ रब अब तू सुन ले…
इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी यह होली। रंगो की वह होली अब फीकी फीकी सी है, सहमी इंसानियत हर पल दूजे से, न पता किधर से रोष…
सुन गौरैया वर्षों पहले मेरा आंगन महकाती थी, मेरा बचपन फुदक तेरे संग, उछल कूद सिखाती थी, डालूं दाना आंगन में जितने, तू आ के चुंग जाती थी, मेरे…
समाज की कुरीतियों से अब, लड़ना हमनें सीख लिया, फटेहाल समाज का मुह, सिलना हमनें सीख लिया, हक़ की हो जब बात तो, छीनना हमनें सीख लिया, इस बेदर्द समाज…
गुण्डागर्दी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है, मारना बस मारना है, खर्चा उनके बिल में है। वो पैसे देंगे हम मारेंगे, नहीं रुकेंगे हाँथ हमारे, नाम होगा देश में…