poem on beti bojh

#14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ

माँ बाप की लाडली बेटी,
समझदार जब थोडी होती,
दुनियादारी बोझ सर ले,
दुनिया को कंधों पे ढोती,
आज का ये समाज सातिर,
खुल के नहीं जीने देता,
ढाई आखर प्रेम शबद की,
डाल देता है बेडियाँ,
मजबूर जो भूत में थी,
आज भी मजबूर दिखें,
इक माँ-बाप नें जो देखी,
राह खडी मजबूर बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।

वित्ते भर की जिन्दगी में
दो अंगुल का सुख,
खेलते सब भावों से,
माँ बाप का प्रेम हासिया,
बस लगती सच्ची दुनिया,
सच्चा झूठा कुछ न जानें,
यूँ बीत गईं कई शदियाँ,
आन-मान सब ताक पे रखें,
खुले आम खेले अठखेलियाँ,
संस्कारों को नकाब से ढक,
राह चली जों देखी बेटियाँ,
कर तुलना अपनी बेटी की,
सोंचे जैसी उनकी बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।


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Hindi Poem on beti ek bojh

Poem on beti ek bojh in hindi

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