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#15-हमारी आश

राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

जमाने के शिले नें हमें यूँ हि भटकता छोड दिया,
दो वक्त की रोटी को यूँ हि तरसता छोड दिया,
कभी खाए कभी न खाए भूखे पेट यूँ हि,
पर रोज हमनें भूखों की महफिलें लगाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

जमाना हमें देख कर यूँ हि विचकता दिखता है,
पास जब हम जाते हैं तो वो थिरकता दिखता है,
हाँथ में देख कर कटोरा यूँ धुत्कारता है हमे,
जैसे उसकी हमसे जन्मों जन्मों की लडाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

आश पर विश्वास की जो जंग सी चलती रहती,
पेट की वो भूख मिटाने को जंग जो चलती रहती,
दिखते देते हर पल यूँ हि हमको सलाह इस दुनिया में,
पर वास्तव में यह हमारे इम्तिहान की अंगडाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।


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देश में गरीबी भुखमरी और लाचारी हमेसा से ही रही है। इसका आंकलन कभी भी किसी सरकार नें व्यापक रूप से सुधार हेतु नहीं किया सिवाए अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के।

Hindi Poem on My hope

Poem on My hope in hindi

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