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Author: jk namdeo

मैं समझ से परे।

एकान्त वासी, अनुरागी,
ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी,
मैं समझ से परे।

दूजों संग संकोची,
पर विश्वासी,
कटु वचन संग,
मृदुभाषी,
मैं समझ से परे।

भोगी विलासी, इक सन्यासी,
परहित की रखता,
इक मंसा सी
मैं समझ से परे।

मतदान

Polling Bakhani
Polling Bakhani Hindi Poem
दौड़ रही है साइकिल,
हांथी भी टक्कर में आगे है,
रेस में कहीं पंजा दिखता,
कमल भी सरपट भागे है,
देखना है जनमत की इस,
कुर्सी में किसकी थाती है,
देखना है आखिर में किसकी,
कितनी चौड़ी छाती है,
एक एक मत जन मानस का,
कैद हुआ है कल* में आज,
जनमत संग्रह उसका है,
मतदाता जिसका साथी है।
(* यहाँ कल का तात्पर्य मशीन है, इसके अतिरिक्त कल भविष्य को भी इंगित करता है ।)
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गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी के कुछ अंश

Tulsi (Tulsidas) Janmotsav

Tulsi Janmotsav (Tulsidas) गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी के कुछ अंश पर आधारित एक छंद बद्ध रचना।

 

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चौपाई

आत्मज आत्मा हुलसी के थे, ये नाथ रत्नावली के थे।
जन्मे कालिंदी के तट पर, शिक्षा पायी सरयू तट पर।।

दोहा

नाम  रामबोला  मिला,  गुरु  सरयू  तट  लाय।
राम कथा गुरुमुख श्रवण, मय गुरु सोरो आय।।

चौपाई

आए काशी सुरसरि तट पर, गहन अध्ययन गूढ़ मनन पर।
गए   प्रेम  में  दरश  कुटीरा, प्राणपियारी    प्रेम   अधीरा।।

कुंडलिया

हाड मास कह पोटली, हृदय लगाया घात।
कटु सत्य पर मनन तुरत, मन जागा वैराग।
मन   जागा  वैराग, सीधे  प्रयाग  को आए।
भक्ती करी अनंत, हनुमत  चित्रकूट  पाए।
जीता  मन विश्वास, श्रीप्रभु   सम्मुख  आए।
घस चंदन घाट तट, रघुवीर तिलक लगाएं।।

दोहा

रामचरित का गान रच, किया सकल उद्धार ।
हे  तुलसी साहित्य हित,  उतरो     बारंबार ।।

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Tulsi Janmotsav तुलसी जन्मोत्सव

तुलसी जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में दोहा, चौपाई एवं कुण्डलिया छन्द का प्रयोग करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी के कुछ अंश पर आधारित छंद रचना।

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Jitendra Kumar Namdeo- जितेन्द्र कुमार नामदेव

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Hanuman Chalisa in hindi

hanuman chalisa

Shri Hanuman Chalisa

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

जय ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
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चाँद शीर्षक कविता की ताँका विधा-

शीर्षक- चाँद पर तांका विधा एक लघु गीत (Tanka pattern titled chand)

 

ऐ चाँद तुझे
खोजा है हर दम
दिल नें मेरे
इक आश सी जगी
जब चांदनी दिखी।।

मन पीछे है
खोज में हरदम
जग वैरी है
छुपाऊँ हर गम
मुस्काता हूँ वेदम।

परंपरा है
तन्हाई से लड़ लें
पैर की बेड़ी
बन कर दुनिया
बढाती है दूरियां।

चांदनी छिपी
मन में तनहाई
दिल में छूरा
मारती हर दम
चाँद कहीं दफ़न।




विवरण ताँका विधा (Tanka pattern)

ताँका — इस शब्द का अर्थ है ‘‘लघु गीत’’। यह जापान की पुरानी विधा है । इसमें 5+7+5+7+7 वर्णों का क्रम होता है ताँका में मात्र 5 चरण होते हैं आधे अक्षरों की गिनती नहीं होती…

इस विधा की अधिक जानकारी के लिए दिये गये लिंक पर क्लिक कर विधा का विवरण व विधा में कविता लिखनें के नियमों को जरूर पढें। हिंदी साहित्य में जापानी कविता की हाइकू विधा इस ताँका विधा से काफी कुछ मिलती जुलती है। मूल नियमों का यदि मिलान करें तो एक ही प्रकार की विधा का मूल प्रदर्श होता है।



तांँका विधा का विवरण


 


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Moon (Chand) Tanka vidha par hindi kavita

 

Tanka Pattern on chand- चाँद पर ताँका विधा की Poem in hindi

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बुंदेलखंड की गाथा- कविता की पिरामिड विधा

ये
जो है
दिखता
फैला यहाँ
बुंदेल खंड
गढ़ता दरश
कहानियां अखंड
सुनने को मिलती है
गौरव  गाथा  चौ तरफा
आज़ादी  की  पहली लड़ाई
हिला डाला उन गोरों को
फैली चौतरफा ऐसे
चपल दौड़े जैसे
पूरा देश एक
बुंदेलखंड
अगुवाई
करता
जग
की।
ये
झाँसी
की रानी
लोहा लेती
सुनी कहानी
है लहू खौलता
सुन गौरव गाथा
ऊँचा  सर  हर दम
हैं सिखाते माटी की पूज
देश  हित  करम  जो  करें
है करम बड़ा न दूजा
माटी पर बलिदानी
लिखे जग कहानी
पढ़े सुने बानी
जीत बखानी
सीखो जग
झाँसी की
रानी
से।

विवरण शब्द पिरामिड (Word pyramid)

एक ऐसी रचना जिसमें शब्दों की संख्या एक एक कर बढती है। शब्दों की गणना की जाती है न कि मात्रा की। संयुक्ताक्षर को एक शब्द माना जाता है। लघु एवं दीर्घ शब्द का अन्तर नहीं पडता अर्थात मात्रा भार का असर नहीं मात्र शब्द गणना की जाती है। प्रत्येक पंक्ति अपनी पूर्ववर्ती पंक्ति से एक अधिक शब्द के साथ होती है। इस प्रकार वर्ड पिरामिड की रचना की जाती है।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


word pyramid par hindi kavita

 

Hindi Poem on word pyramid

word pyramid Poem in hindi

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