लफ्जों का दौर बीत गया,
रह गया एहसास,
छोंड भविष्य की अविरल चिन्ता,
और करिये इक एहसास ।
बिना धूल की धूप का,
बिन पहिए की रोड का,
बिना आफिस के बास का,
करिये इक एहसास ।
बिना रेस्ट्राँ खानो का,
बिना फास्टफूड दुकानों का,
व बिना हाल हालातों का ,
करिये इक एहसास ।
माँ बाप के करीब बैठने का,
संग पत्नी खाना खाने का,
बच्चों की बोलियों का,
परिवार में कम होती दूरियों का,
करिये इक एहसास ।
संगी के साथ बीते पुराने लम्हों का,
बचपन की हुई सभी कुटाइयों का,
हर बात किये बहाने का,
बीते उस दौर जमाने का
करिये इक एहसास ।
माँ के नाजुक हाँथों का,
पिता से मिली लातों का,
माँ के बनाए खाने का
रात में कहानी बताने का,
करिये इक एहसास ।
दादा दादी का बने सहारों का,
पुराने टुटे छप्पर में बचपन के दीदारों का,
घर के सामने लगे हुए पेडों पर आम के घरौंदो का,
कूकती हुई कोयल व अन्य सुन्दर आवाजों का
करिये इक एहसास ।
दादा के साथ बाजार और शादियों में जाने की जिद करने का,
डाट खाने के बाद भी उनके कंधे बैठकर गांव गांव घूमने का,
वर्तमान में दौड भाग की जिन्दगी में अपनों को समय न देने
करिये इक एहसास ।
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एहसास
A hindi poem on feelings
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This is a hindi poem expressing about the thoughts on feelings, written by Pt. Akhilesh Shukla.
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