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Month: February 2018

#32-मंजिल क्या है

ऐ पवन ! ठहर जरा,
बता तेरी मंजिल क्या है?
क्या तू कभी सोंचता है,
तेरे भाग्य लिखा क्या है?

ऐ सूरज! तू ठहर जरा,
क्यों बार-बार गुजरता है
तेरी मंजिल कहां छुपी है
क्या सच तुझको पता है
क्यों जग रोशन करता है
तू बता तेरी मंजिल क्या है

ऐ भौंरे रुक जा यहीं पर
क्यों हर पुष्प से आलिंगन करता है
क्या तूनें अपनी मंजिल नहीं चुनी है
सब कहते हैं सबकी मंजिल है,
ऐ भौंरे तू बता, तेरी मंजिल क्या है


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Hindi Poem on manzil

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Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on manzil

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एक कहावत है कि इस दुनिया में जो कुछ भी है सबका रास्ता व मंजिल नियति के द्वारा पूर्व में ही तय है। प्रकृति की प्रकृति कभी एक संशय उत्पन्न कर देती है। उद्येश्य तो ठीक है कभी कभी समझ में आ जाता है परन्तु मंजिल तो समझ में ही नहीं आती। अपने इसी संदेह को दूर करनें के लिए प्रकृति से ही पूछे गये प्रश्नों की एक कडी है परन्तु ये प्रश्न निरुत्तर हैं । परन्तु इन्ही प्रश्नों के उत्तर से ही दुनिया में जीवन्त समस्त सजीव व निर्जीव की महत्ता का बोध होता है। एक सच्चा ज्ञान का प्रकाश मिलता है।

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#31-पुलिस पर विश्वास

मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है
संग किसी के घटना होती दौडा दौडा पुलिस को जाता है,
गुस्सा हो मन में कितना भी कितना भी वह बोले भ्रष्ट,
जब सर ठीकरा फूट पडे वह आप बीती पुलिस को जा के बताता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।

समाज खुद को कितना भी कह दे कि निडर वह रहता है,
जब तक पडे न सर पर आफत उल्टा सीधा बकता रहता है,
संसार में सर्वशक्तिमान बन, सर्वश्रेष्ठ खुद को कहता है,
पर जब सर पर आफत पडती, भाग पुलिस को आता है,
संग उसके जो गलत है होता जिम्मेदार पुलिस को ठहराता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।

घर में चोरी भागी छोरी छीना झपटी मार पिटाई,
जुँआ सुरा हत्या व्यभिचार छेड छाड अन्याय दबंगाई,
हर पल हर छण बिना विचार के जिम्मेदार पुलिस ठहराया जाता है,
जब कोई इस दौर से गुजरे, पुलिस पुलिस चिल्लाता है,
मन में दबा विश्वास आखिर झलक ही जाता है।


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Hindi Poem on faith on police

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#30-शांत तो अच्छे

हंसते रहो तो तुम अच्छे
जो बोल दिया तो जग रूठेगा
चुप सहते रहो तो तुम अच्छे,
कुछ बोल दिया तो जग रूठेगा।
सत्य राह चलो कितना भी तुम,
मूक बने सहो कितना भी,
सह कर अपना अपमान जग में,
दूजों का सम्मान करो कितना भी,
अच्छे नहीं तुम गंदे हो जो,
मुख से आह बोल दिया,
इंसाफ के तराजू से खुद को
और उनको जो तोल दिया,
तोल दिया हर पल जो तुमनें,
जान लो जग रूठेगा,
जग रूठेगा साथ छूटेगा,
दुनिया में आशा और विश्वास टूटेगा,
गर दिखाया चेहरा उदास शान्त,
तो उन्नत का आश टूटेगा।
हंसते रहो तो तुम अच्छे,
जो बोल दिया तो जग रूठेगा।


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शांत तो अच्छे एक हिंदी कविता

इस हिंदी कविता के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति की व्याख्या करनें का एक प्रयास किया गया है। यदि किसी की बातें सुन कर अनसुनी कर दो तो तुम अच्छे हो पर वही बात अगर किसी ऐसे व्यक्ति से कह दो जो बातों को अनसुनी नहीं करता या फिर ये कहें कि तारतम्य नहीं बैठाता तो उसके लिए आप बुरे ही नहीं बहुत बुरे बन जाते हो।

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#29-ढूंढते रह जाओगे

अब की शदी में यार ढूंढते रह जाओंगे ।

देश भक्त और नेता सच्चा,
माँ का दूध कमाऊ बच्चा,
शरीफों के गले में हार,
ढूंढते रह जाओगे।

गुरू सच्चा शिष्य आज्ञाकारी,
नेक पति पतिवृता नारी,
भाई का मधुर दुलार,
ढूंढते रह जाओगे।

निर्मल नीर ज्ञान अरु ज्ञानी,
संत महंत दान अरु दानी,
अंखियां पानीदार,
ढूंढते रह जाओगे।

मर्द की मूँछ सास की चादर,
बहू का घूंघट बडों का आदर,
नारी के लम्बे बाल,
ढूंढते रह जाओगे।

रीति रिवाज विवाह की रश्में,
जीवन भर साथ निभानें की कश्में,
हरा भरा परिवार,
ढूंढते रह जाओगे।

पीने को दूध खानें को मेवा,
जवानी का जोश बुढापे की सेवा,
जग में परोपकार,
ढूंढते रह जाओगे।

राधा सा प्रेम भरत सा भइया,
सुदामा सा मित्र पन्ना सी मइया,
वो गीता का सार,
ढूंढते रह जाओगे।

अमर शहीदों की वो मर्जी,
सच कहते हैं बुद्धू दर्जी,
कविता के उच्च विचार,
ढूंढते रह जाओगे।

यह कविता मेरे मामाजी श्री बुद्धराज नामदेव द्वारा लिखी गयी है ।

 


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ढूंढते रह जाओगे एक हिन्दी कविता

इस हिंदी कविता के माध्यम से इस जग की कुछ ऐसी बातों का उल्लेख किया गया है जो आज लगभग विलुप्त सी हो गयी हैं। इस संसार में जैसे कि हम कहानियों और किंबदंतियों में सुनते हैं कि हमारे पूर्वज एक दूसरे का सम्मान आदर करनें में कोई कोर कसर नहीं छोंडा करते थे पर आज के इस मोबाइल दुनिया में यह भी खो सा गया है। पाश्चात्य शैली के आगमन और उसके अनुसरण के फलस्वरूप आज की यह कैसी दुनिया है।

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#28 बेचैन भ्रमण

अपनें मन की बातों को न समझ पाया अब तक,
न कर पाया न्याय अपनें विचारों के साथ,
मन का वो समन्दर हिलोरे मार रहा है यूँ,
कि लगे जैसे मैं आज दुनिया को खटक रहा हूँ,
मैं बेचैन हो यूँ भटक रहा हूँ।

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हिन्दी कविता – बेचैन भ्रमण

इस हिन्दी कविता के माध्यम से अपने मनोभावों को प्रकट करनें का एक प्रयास किया गया है।  एक ऐसी स्थिति को वर्णित करनें का प्रयास है कि मानो खुद ही अपनें भावों को समझनें काफी दिक्कत हो रही है एवं ऐसी स्थिति स्वच्छन्द भ्रमण ही एक मात्र रास्ता अख्तियार कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो खुद दुनिया को बहुत ही ज्यादा खटक रहा हो। स्वयं के ये मनोभाव एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं कि मानो इस दुनिया में सब कुछ थम सा गया है और न जाने किस राह की बस भटकते भटकते जाना पड रहा है। ऐसी स्थिति ही बेचैन भ्रमण को दर्शाती है। ऐसी परिस्थिति में दुनिया में क्या होना चाहिए।

Hindi Poem on restless travelling

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