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#28 बेचैन भ्रमण

अपनें मन की बातों को न समझ पाया अब तक,
न कर पाया न्याय अपनें विचारों के साथ,
मन का वो समन्दर हिलोरे मार रहा है यूँ,
कि लगे जैसे मैं आज दुनिया को खटक रहा हूँ,
मैं बेचैन हो यूँ भटक रहा हूँ।

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हिन्दी कविता – बेचैन भ्रमण

इस हिन्दी कविता के माध्यम से अपने मनोभावों को प्रकट करनें का एक प्रयास किया गया है।  एक ऐसी स्थिति को वर्णित करनें का प्रयास है कि मानो खुद ही अपनें भावों को समझनें काफी दिक्कत हो रही है एवं ऐसी स्थिति स्वच्छन्द भ्रमण ही एक मात्र रास्ता अख्तियार कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो खुद दुनिया को बहुत ही ज्यादा खटक रहा हो। स्वयं के ये मनोभाव एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं कि मानो इस दुनिया में सब कुछ थम सा गया है और न जाने किस राह की बस भटकते भटकते जाना पड रहा है। ऐसी स्थिति ही बेचैन भ्रमण को दर्शाती है। ऐसी परिस्थिति में दुनिया में क्या होना चाहिए।

Hindi Poem on restless travelling

Poem on restless travelling in hindi

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Author

jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।

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