SOCIETY

Hindi poem on women empowerment

#17-महिला सशक्तिकरण

समाज की कुरीतियों से अब, लड़ना हमनें सीख लिया, फटेहाल समाज का मुह, सिलना हमनें सीख लिया, हक़ की हो जब बात तो, छीनना हमनें सीख लिया, इस बेदर्द समाज में खुलकर, जीना हमनें सीख लिया। कब तक यूँ दबी कुचली सी, हालत में रहेंगे, जमाने के डर नें सर, नीचे करा रखा था, डरा […]

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poem on gundagardi

#16-गुण्डागर्दी की तमन्ना

गुण्डागर्दी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है, मारना बस मारना है, खर्चा उनके बिल में है। वो पैसे देंगे हम मारेंगे, नहीं रुकेंगे हाँथ हमारे, नाम होगा देश में तब, खर्चा देंगे वो सारे। बीरप्पन जैसे अनेक, जो नेताओं को तारें, लालच बस ये होते हैं, उनके किस्मत के तारे। देश में आतंक मचाना,

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Poem on my hope

#15-हमारी आश

राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है। जमाने के शिले नें हमें यूँ हि भटकता छोड दिया, दो वक्त की रोटी को यूँ हि तरसता छोड दिया, कभी खाए कभी न खाए भूखे पेट यूँ हि, पर रोज हमनें भूखों की महफिलें लगाई है, राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश

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poem on beti bojh

#14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ

माँ बाप की लाडली बेटी, समझदार जब थोडी होती, दुनियादारी बोझ सर ले, दुनिया को कंधों पे ढोती, आज का ये समाज सातिर, खुल के नहीं जीने देता, ढाई आखर प्रेम शबद की, डाल देता है बेडियाँ, मजबूर जो भूत में थी, आज भी मजबूर दिखें, इक माँ-बाप नें जो देखी, राह खडी मजबूर बेटियाँ,

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