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Tag: SOCIETY

#17-महिला सशक्तिकरण

समाज की कुरीतियों से अब,
लड़ना हमनें सीख लिया,
फटेहाल समाज का मुह,
सिलना हमनें सीख लिया,

हक़ की हो जब बात तो,
छीनना हमनें सीख लिया,
इस बेदर्द समाज में खुलकर,
जीना हमनें सीख लिया।

कब तक यूँ दबी कुचली सी,
हालत में रहेंगे,
जमाने के डर नें सर,
नीचे करा रखा था,

डरा रखा था हर कदम,
सितम ढाया था बेवजह,
स्वातंत्र्य की महक जो,
फैली यूँ हर तरफ,

स्वछन्द रह कर कंधे से,
कन्धा मिलाया है हमने,
जब भी सर उठा कर,
चलनें की कोशिश की हमनें,

दबा दिया था डरा कर सर नीचे पर,
सर उठा कर चलना हमनें सीख लिया,
समाज की हर कुरीतियों लड़कर,
आखिर जीना हमनें सीख लिया।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on women empowerment

Poem on women empowerment in hindi

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Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on women empowerment

Kavita on mahila sashaktikaran in hindi

महिला दिवस

आज की नारी -नारी सशक्तिकरण

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#16-गुण्डागर्दी की तमन्ना

गुण्डागर्दी की तमन्ना,
अब हमारे दिल में है,
मारना बस मारना है,
खर्चा उनके बिल में है।
वो पैसे देंगे हम मारेंगे,
नहीं रुकेंगे हाँथ हमारे,
नाम होगा देश में तब,
खर्चा देंगे वो सारे।

बीरप्पन जैसे अनेक,
जो नेताओं को तारें,
लालच बस ये होते हैं,
उनके किस्मत के तारे।
देश में आतंक मचाना,
बस इतना ही आता,
पैसा देता यह नेता,
यही राजनीति सिखाता।

राजनीति की चंगुल में,
ये फंस इस कदर जाते,
एक बार पैर जमनें पर,
ये नहीं कभी उबर पाते,
बस मारते हैं मारते,
और मारते रह जाते।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


हिंदी कविता गुण्डा गर्दी की तमन्ना

इन पंक्तियों के माध्यम से एक दर्पण रख कर प्रतविम्ब को दर्शाने का प्रयत्न किया गया है। देश की युवा पीढी गलत आदर्श मन में रख कर गलत राह में निकलनें को नहीं हिचकती। परन्तु यही पंक्तियाँ समाज की सच्चाई को उजागर करती हैं। समाज इस सच्चाई को झुठला नहीं सकता। सामाजिक सराबोरता इन पंक्तियों को पूरी तरह से बल देती प्रतीत होती है। सामाजिक मतभेद व राजनैतिक लाभ इस प्रकार की प्रवृत्ति को पूर्ण रूप से सहारा देती हैं।

Hindi Poem on Gundagardi

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#15-हमारी आश

राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

जमाने के शिले नें हमें यूँ हि भटकता छोड दिया,
दो वक्त की रोटी को यूँ हि तरसता छोड दिया,
कभी खाए कभी न खाए भूखे पेट यूँ हि,
पर रोज हमनें भूखों की महफिलें लगाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

जमाना हमें देख कर यूँ हि विचकता दिखता है,
पास जब हम जाते हैं तो वो थिरकता दिखता है,
हाँथ में देख कर कटोरा यूँ धुत्कारता है हमे,
जैसे उसकी हमसे जन्मों जन्मों की लडाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।

आश पर विश्वास की जो जंग सी चलती रहती,
पेट की वो भूख मिटाने को जंग जो चलती रहती,
दिखते देते हर पल यूँ हि हमको सलाह इस दुनिया में,
पर वास्तव में यह हमारे इम्तिहान की अंगडाई है,
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


हिंदी कविता

देश में गरीबी भुखमरी और लाचारी हमेसा से ही रही है। इसका आंकलन कभी भी किसी सरकार नें व्यापक रूप से सुधार हेतु नहीं किया सिवाए अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के।

Hindi Poem on My hope

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#14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ

माँ बाप की लाडली बेटी,
समझदार जब थोडी होती,
दुनियादारी बोझ सर ले,
दुनिया को कंधों पे ढोती,
आज का ये समाज सातिर,
खुल के नहीं जीने देता,
ढाई आखर प्रेम शबद की,
डाल देता है बेडियाँ,
मजबूर जो भूत में थी,
आज भी मजबूर दिखें,
इक माँ-बाप नें जो देखी,
राह खडी मजबूर बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।

वित्ते भर की जिन्दगी में
दो अंगुल का सुख,
खेलते सब भावों से,
माँ बाप का प्रेम हासिया,
बस लगती सच्ची दुनिया,
सच्चा झूठा कुछ न जानें,
यूँ बीत गईं कई शदियाँ,
आन-मान सब ताक पे रखें,
खुले आम खेले अठखेलियाँ,
संस्कारों को नकाब से ढक,
राह चली जों देखी बेटियाँ,
कर तुलना अपनी बेटी की,
सोंचे जैसी उनकी बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।


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Hindi Poem on beti ek bojh

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