#17-महिला सशक्तिकरण
समाज की कुरीतियों से अब, लड़ना हमनें सीख लिया, फटेहाल समाज का मुह, सिलना हमनें सीख लिया, हक़ की हो जब बात तो, छीनना हमनें सीख लिया, इस बेदर्द समाज…
समाज की कुरीतियों से अब, लड़ना हमनें सीख लिया, फटेहाल समाज का मुह, सिलना हमनें सीख लिया, हक़ की हो जब बात तो, छीनना हमनें सीख लिया, इस बेदर्द समाज…
गुण्डागर्दी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है, मारना बस मारना है, खर्चा उनके बिल में है। वो पैसे देंगे हम मारेंगे, नहीं रुकेंगे हाँथ हमारे, नाम होगा देश में…
राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है। जमाने के शिले नें हमें यूँ हि भटकता छोड दिया, दो वक्त की रोटी को यूँ हि तरसता छोड दिया,…
माँ बाप की लाडली बेटी, समझदार जब थोडी होती, दुनियादारी बोझ सर ले, दुनिया को कंधों पे ढोती, आज का ये समाज सातिर, खुल के नहीं जीने देता, ढाई आखर…
ऐ प्रकृति मैं तुझे संभालूं। हरियाली मैं तुझे संजोऊँ। पीढी दर पीढी घटती जाए, मूढ कहे तू काम न आए, वो अज्ञानी तुझे मिटाए, अकेला समझाऊँ समझ न आए, मत…