hindi poem on corona

#60 कोरोना से क्या सीखे हम ?

जब से जग में कोरोना महामारी आई,

सारे जग में खूब तबाही मचाई,
जन जन त्रस्त घरों में कैद,
कोरोना वारियर्स लडने को मुस्तैद,
हर हाल जन जन लड रहा है,
रह दूर अपने नित्य जीवन से,
अपने घरों में रह रहा है ।

सल्यूट कोरोना वारियर्स को,
तज घर परिवार ड्यूटी अपनी कर रहे हैं,
सारे जग की चिन्ता उनको,
निज जीवन को नहीं डर रहे हैं,
कोरोना दुश्मन नहीं ऐसा जिसे मजहब से बैर,
जन जो जद में आया या आ जाए,
नहीं समझो उसकी खैर ।

इतना आगे निकल जो आए,
जग सकल दृढ संदेशा पहुंचाएं,
कोरोना को हारना ही होगा,
अपने लिए अपने परिवार के लिए,
अपने देश के लिए अपने संसार के लिए,
कर बल छल चाहे जैसे सबको मिलकर,
कोरोना को मारना ही होगा ।

रह इतने दिन घरों में,
सबने कुछ तो सोंचा होगा,
क्या करना था क्या करते थे,
यह सब तो सोंचा होगा,
भाग दौड भरी जिंदगी में,
किसको नुकसान पहुंचा रहे थे पर,
जब जग खुलेगा क्या करना कैसे करना ये तो सोंचा होगा !

गावों से इतर शहर शहर में,
कितना गन्दा कर रखा था प्रकृति को,
आज एकान्त पाकर प्रकृति नें,
जन जन को बतलाया है दिखलाया है,
दावे कितना भी हम कर लें,
स्वच्छ प्रकृति हम कर लेंगे पर,
प्रकृति की ऐसी शुद्धता जीवन में सायद ही देखी होगी ।

हवा स्वच्छ और स्वच्छ नीर है,
रज नद कूट वृक्ष प्रकृति का जंजीर है,
निज स्वारथ हम जन मानस,
जंजीर को हर दम तोड रहे थे,
परे जीवन के सच्चे मूल्यों से,
सब पैसों में हम तोल रहे थे,
पर अब भी हम जन मानस ने जीवन मूल्य क्या समझा होगा !

है जीत की बखानी यह,

इक दिन सारा संसार खुलेगा,
मंदिर के पट खुलेंगे चर्च व मस्जिद खुलेंगे,
खुलेगा गुरुद्वारा इस जग में रब का हर दरवार खुलेगा,
मन की आस्था मन में जिंदा है,
जिंदा है आदर सम्मान की भाषा,
इस जग में जिंदा है इंसान की यही परिभाषा ।

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1 thought on “#60 कोरोना से क्या सीखे हम ?”

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