#15-हमारी आश

#15-हमारी आश

  • Mar 08, 2017

राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश लगाई है। जमाने के शिले नें हमें यूँ हि भटकता छोड दिया, दो वक्त की रोटी को यूँ हि तरसता छोड दिया, कभी खाए कभी न खाए भूखे पेट यूँ हि, पर रोज हमनें भूखों की महफिलें लगाई है, राह से गुजरते हर राहगीर से हमनें आश […]

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