poem on savan for nature
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#10-शरद बखानी

पानी सरपत से सरकत जाए रे। ठंडी हवा का झोंका रोंवा कंपकंपाए रे, पानी सरपत से सरकत जाए रे। दूर तलक देखो कोई आश नहींं है, सूखा सा पडा है…

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