#55 चित- मन का लहरी
मन का लहरी सज संवर कर, स्वच्छन्द जहां विचरण करता, सार्वभौम जो सत्य जहां पर, जाने कौन कब कैसे तरता, चलते फिरते खडे खडे यूं, बातों बातों अन्तिम मंजिल आ जाती, जीत पलों को उस छण में फिर, काहे सोंचता क्या करता क्या न करता, मन का लहरी सज संवर कर, स्वच्छन्द जहां विचरण […]
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