मन का लहरी सज संवर कर,
स्वच्छन्द जहां विचरण करता,
सार्वभौम जो सत्य जहां पर,
जाने कौन कब कैसे तरता,
चलते फिरते खडे खडे यूं,
बातों बातों अन्तिम मंजिल आ जाती,
जीत पलों को उस छण में फिर,
काहे सोंचता क्या करता क्या न करता,
मन का लहरी सज संवर कर,
स्वच्छन्द जहां विचरण करता।
कर कर्म जहां पर सुविचार संग,
परोपकार की मंसा रख कर,
स्वारथ पहलू सिक्का है दूजा,
प्रतिपल प्रतिक्षण परस्वारथ कर,
ईश्वर भी सब देख रहा है,
मन को ऐसा विश्वास दिला कर,
नेक कर्म से नेक भाव से,
क्यों न अपना घट पुण्य से भरता।
जब चिडिया चुग जाती खेत,
जग पछताता आहें भरता,
दूध का जला फूंक कदम रख,
छाछ मुख लगाने से डरता,
तज माया ऊपर वाले पर,
निःस्वारथ बस करम जग करता,
मन का लहरी सज संवर कर,
स्वच्छन्द जहां विचरण करता।
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Poem on Heart
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