#20.किसान और प्रकृति
निर्बल दुर्बल खेतिहारी पर,सूखे की मार भारी है,पकी फसल पर वारिस पत्थर,और भी प्रलयंकारी है। वह झूल रहा है फंदो से,रब रूठ गया है बंदो से,ऐ रब अब तू सुन ले तेरे,बंदो पर संकट भारी है। चिडियों की चहक भी मन्द हुई,मुर्गों की बांग भी झूठी है,कहीं अति गर्मी बेमौसम बारिस,देखो प्रकृति हमसे रूठी है। […]
#20.किसान और प्रकृति Read More »