poem-on-politics-of-thrown

#37-राज की राजनीति

राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा।

आखिर लकडी की हांडी को,
कब तक भटठी चढाएगा,
दूध से जो जला इस जग में,
मट्ठा फूंक कर पीता है,
जनता को बहला फुसला कर,
आखिर दूर कितना जाएगा,
जन सेवा नहीं जो राज करेगा,
हर शाख उल्लू कहलाएगा,
राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा।

जनमानस की आवाज बुलन्द है,
ढूंढ रहे आनन्द आनन्द है,
नैनों में इक सपना है,
खोज रहे- कौन पराया कौन अपना है,
चेहरे भांति जो सामने आते,
ढूंढ रहे इक मौका है,
जनता मौका सब को देती
पर मौका कौन भुनाएगा,
राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा।

राजनीति से ओत प्रोत अब,
जाति धर्म से दूर भगो,
फूट डालो राज करो की,
कुरीति से अब ऊपर उठो,
इक दूजे की कमियां न गिना कर,
देश विकास की राह चलो,
अन्यथा की इक बात सुनो,
जनता मानस आइना दिखलाएगा,
राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा।

इसकी टोपी उसके सर की,
नीति को बदल डालो,
देश विकास की राह में,
इक- दूजे के कन्धे बाहें डालो,
टांगे इक दूजे की खींचते दिखते,
जन मानस मूरख समझते हो !
राजनैतिक रोटियां सेंकना,
जनमानस नहीं सह पाएगा,
राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा ।

यह देश है किसान का,
यह देश है जवान का,
खेतों में मेहनत कर करके,
उगाते सोना माटी से,
सीमा पर जान गंवा देते जब,
दांव लगे देश सम्मान का,
देश में वही सत्ता होगी जो,
जनमानस अपनाएगा,
राज की जो राजनीति करेगा,
वह ज्यादा टिक न पाएगा।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on politics of thrown

Poem on politics of thrown

Facebook link

बखानी हिन्दी कविता के फेसबुक पेज को पसंद और अनुसरण (Like and follow) जरूर करें । इसके लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें- 

Bakhani, मेरे दिल की आवाज – मेरी कलम collection of Hindi Kavita

Youtube chanel link

Like and subscribe Youtube Chanel 

Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Poem on politics of thrown

Poem on Poet in hindi 

0 0 votes
Article Rating
Total Page Visits: 1008 - Today Page Visits: 1
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।