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Month: February 2018

#27- फेसबुक से दूरी

हमने तो फेसबुक से दूरी बना ली थी।
अपने में ही एक महफिल सजा ली थी,
पर दुनिया नें कहा ह्वाट्स ऐप और फेसबुक पर आओ,
छोड कर हमें यू मझधार में चल दिये थे सब अलग,
न आकर देखा कि दुनिया ने हमसे अपनी कस्ती फिरा ली थी,
हमने तो फेसबुक से दूरी बना ली थी।

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–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


फेसबुक से दूरी पर एक हिन्दी कविता

इस कविता के माध्यम से इस बात को प्रकट करनें का प्रयास किया गया है कि जब फेसबुक जैसे सोशल मीडिया का प्रयोग करना जब बन्द कर दिया था तो दोस्त लोगों के कहनें पर पुनः वापस आना पडा क्योंकि यह उनकी मांग थी और इस प्लेटफार्म के माध्यम से एक जुडाव बना रहता है ।  इसी प्रकार ह्वाट्सऐप पर भी यही हाल है । इस प्रकार पुनः फेसबुक या ह्वाट्सऐप पर वापस आना ही पडा । इस लिए इस दुनिया में एक जुडाव के लिए अलगाव होना बहुत जरूरी है । बिना अलगाव किसी जुडाव का कोई आनन्द नहीं है। जिन्दगी में गुस्सा और प्यार दोनों ही जरूरी हैं। रूठना मनाना गुस्सा होना आदि आदि

Hindi Poem on facebook life

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#26-ऐ बेटी तू देश की

तुझमें सबको गर्व, फक्र से सर ऊंचा कर हम चलते हैं,
माँ की कोख से लेकर, बहन की राखी संग ले चलते हैं,
बीवी बन कर रख खयाल, तू देश को पीढी देती है,
हर रूप से हमको संभाल कर, तू न चिन्ता करती अपने वेश की,
ऐ बेटी तू देश की।

सीता से द्रोपती तक, मीरा से लक्ष्मी तक, हर रूप तूने……
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#25-ARE WE INDEPENDENT?

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देश हुआ आजाद हुए अब हो गए हैं दिन इतने,

जो सच पूछो दिल से बोलो आजाद रहे हम दिन कितने

……..

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#24-RET KE DARIYA

मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।
जग में यूँ हि राह चलूं,
विश्वास समय के साथ चलूं,
पर समय का पहिया आगे काफी,
न पाऊँ दिन रात चलूँ,
मैं भूल बिसर कर चलता जाऊँ,
सब कुछ खोऊँ कुछ न पाऊँ,
अस्त व्यस्त कर दे जीवन,
ऐसी चली ये आँधी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।

मैं मूरख अज्ञान गगन में,
विम्ब विलोकत वक्त बिताऊँ,
आगे बढनें की चाह अनोखी,
पर पीछे ही रह जाऊँ,
दुनिया में सब हास उडाएं,
शांत रहूँ कुछ कर न पाऊँ,
हास विलास पर हित पर,
फिर भी ढूंढू बैसाखी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।

भूल गया मैं जग में सब से
अलग थलग सा रहता हूँ,
भुला दिया मुझे जग में सब,
खुद से बस ये कहता हूँ,
समय का धारा बहती निश छण,
मैं अलग सा बहता हूँ,
पूरब पश्चिम का मेल अनोखा,
फिर भी मन है बैरागी,
मैंने रेत का दरिया मुठ्ठी बाँधी।
प्रभु मात पिता के चरणों में रहता हूँ,


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Hindi Poem on Life time

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#23-बुंदेलखण्ड

न देखी किसी ने दशा वो मेरी,
बस हंसते रहे मुस्कुराते रहे,
मेरी दशा को उथला दिखा,
जग को धता बस दिखाते रहे,
दिखता है जो क्या बस वो सच है,
जो न दिखे वो भी तो सच है,
सूखा पडा न जल की बूद है,
अस्तित्व अपना अब खो रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

इतिहास मेरा गोरवान्वित करे,
धडकन बन सम्मानित करे,
कभी सूरज अंगारे बरसाए,
कभी इन्द्र बज्र प्रहार करे,
पहले मैं खुशहाल था अब,
मची हर तरफ हा-हा कार,
मेरा किसान है झूल रहा,
हर घर कोना अब चीख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

चीरा सीना सोना जिनने उगलाया,
मुझको सोने की चिडिया था कभी कहलाया,
वो रो रहे हैं बिलख रहे हैं,
मानस तप सा सुलग रहे हैं,
लूट लूट पाषाण रज नद से,
मानष जन को दे तडप रहे हैं,
हर पल हर जन बस अब देखो,
बूंद बूंद को बिलख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।

मैं खामोश हूँ थोडा बेहोस हूँ,
अपनी हालात में थोडा मदहोस हूँ,
मैं तो हंसता हुआ एक प्रतिविम्ब हूँ,
मन में उठते सवालों का एक विम्ब हूँ,
खामोस हूँ तो नहीं क्रोध में,
मुस्कुराऊँ अगर तो नहीं सुख में,
मुस्कुरा रहा हूँ नहीं चीख रहा,
दुनिया से लडना मैं अब भी सीख रहा,
मैं बुन्देलखण्ड हूँ रो रहा।


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Hindi Poem on Bundelkhand

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