काश्मीर से हटी क्या धारा तीन सौ सत्तर,
भडकाकर लोगों को दिल्ली पर बरसा दिया पत्थर,
जमाना बेबाक निष्ठुर ढंग से देखता रह गया,
और जमाने ने जमाने को आइना दिखला दिया ।
घरौंदे जब आइने के बने होते हैं,
शदियों से तहजीब जब कंधे ढोते हैं,
संभल कर पग रखना होता है घर से निकल कर,
जमाने को एक बार फिर जमाने नें बतला दिया ।
मशहूर है पत्थर को तबियत से उछाल कर देखो,
तो आसमां में भी सुराख हो सकता है,
देश जाने कब विकास की राह पर चला,
जमाने ने जमाने को ही सर-ए-आम झुठला दिया ।
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Explanation of Hindi poem on Delhi Riots
यह हिन्दी कविता एनआरसी और सीएए (NRC and CAA) के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा की व्याख्या करनें का एक प्रयास मात्र है । हिन्दी साहित्य के माध्यम से जम्मू और कश्मीर में हुई पूर्व की घटनाओं और दिल्ली हिंसा के अन्तर्गत हुई हिंसाओं को एक तराजू में रख कर यदि देखा जाए तो बहुत सारी समानताएं देखनें को मिलती हैं । देश में किस प्रकार का माहौल बन रहा है या बनाया जा रहा है, अत्यन्त दुःखद है । Poem on Delhi #poem on nrc #Poem on caa hindi poems
A Hindi Poem on Delhi Riots
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