#14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ

माँ बाप की लाडली बेटी, समझदार जब थोडी होती, दुनियादारी बोझ सर ले, दुनिया को कंधों पे ढोती, आज का ये समाज सातिर, खुल के नहीं जीने देता, ढाई आखर प्रेम शबद की, डाल देता है बेडियाँ, मजबूर जो भूत में थी, आज भी मजबूर दिखें, इक माँ-बाप नें जो देखी, राह खडी मजबूर बेटियाँ, […]

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