Home hindi poems #21-दृढ बनो
hindi poems

#21-दृढ बनो

निकला था अलि भ्रमर में,
अंजानें मंजिल की खोज,
दिल में आश लगाए भटके,
मन में मंजिल पानें की सोंच,
राह भटकते रात हुई वह,
लौट पडे निज गृह को तेज,
स्वप्न में भी मंजिल को ढूंढे,
निकल पडे गृह को छोड,
निकला था अनि भ्रमर में,
अंजाने मंजिल की खोज।

आश न छोडे चाह न छोडे,
निकले दिन प्रति दिन वह,
बिना राह के मंजिल ढूंढे,
पूंछे मंजिल पुष्पों से वह,
राह के हर पुष्प से करे,
मंजिल की कडी जांच,
तोडे न दिल की आश,
दृढता की जरूरत आज,

शुरू करो जिस को,
अन्त करो पाओ परिणाम,
सभी मुश्किलों से लडो,
निकल जाए चाहे तुम्हरे प्राण।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


दृढता की जरूरत आज

इस हिन्दी कविता के माध्यम से आज के समय में दृढता की जरूरत को दर्शाया गया है। इस दृढता के लिए उदाहरण दिया गया है एक भौंरे (भ्रमर) का जो प्रतिदिन हर पुष्प से आलिंगन करता सा दिखता है जिसमें कल्पना की गयी है कि वह भौंरा प्रतिदिन अपने आशियाने से निकल कर प्रत्येक पुष्प से जिससे मिलता है बडे ही धीर भाव से अपनी मंजिल के बारे में पूंछता है।

Hindi Poem on consistent

Poem on consistent in hindi

Facebook link

बखानी हिन्दी कविता के फेसबुक पेज को पसंद और अनुसरण (Like and follow) जरूर करें । इसके लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें-

Bakhani, मेरे दिल की आवाज – मेरी कलम collection of Hindi Kavita

Youtube chanel link

Like and subscribe Youtube Chanel

Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on be consistent

Kavita on be consistent in hindi

Total Page Visits: 1309 - Today Page Visits: 1

Author

jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Get 30% off your first purchase

X