Home hindi poems #14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ
hindi poems

#14-क्यों न लगें बोझ बेटियाँ

माँ बाप की लाडली बेटी,
समझदार जब थोडी होती,
दुनियादारी बोझ सर ले,
दुनिया को कंधों पे ढोती,
आज का ये समाज सातिर,
खुल के नहीं जीने देता,
ढाई आखर प्रेम शबद की,
डाल देता है बेडियाँ,
मजबूर जो भूत में थी,
आज भी मजबूर दिखें,
इक माँ-बाप नें जो देखी,
राह खडी मजबूर बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।

वित्ते भर की जिन्दगी में
दो अंगुल का सुख,
खेलते सब भावों से,
माँ बाप का प्रेम हासिया,
बस लगती सच्ची दुनिया,
सच्चा झूठा कुछ न जानें,
यूँ बीत गईं कई शदियाँ,
आन-मान सब ताक पे रखें,
खुले आम खेले अठखेलियाँ,
संस्कारों को नकाब से ढक,
राह चली जों देखी बेटियाँ,
कर तुलना अपनी बेटी की,
सोंचे जैसी उनकी बेटियाँ,
क्यों न लगें बोझ बेटियाँ।


–>सम्पूर्ण कविता सूची<–


Hindi Poem on beti ek bojh

Poem on beti ek bojh in hindi

Facebook link

बखानी हिन्दी कविता के फेसबुक पेज को पसंद और अनुसरण (Like and follow) जरूर करें । इसके लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें-

Bakhani, मेरे दिल की आवाज – मेरी कलम collection of Hindi Kavita

Youtube chanel link

Like and subscribe Youtube Chanel

Bakhani hindi kavita मेरे दिल की आवाज मेरी कलम

Hindi Kavita on beti ek bojh

Kavita on beti ek bojh in hindi

 

Total Page Visits: 2296 - Today Page Visits: 1

Author

jk namdeo

मैं समझ से परे। एकान्त वासी, अनुरागी, ऐकाकी जीवन, जिज्ञासी, मैं समझ से परे। दूजों संग संकोची, पर विश्वासी, कटु वचन संग, मृदुभाषी, मैं समझ से परे। भोगी विलासी, इक सन्यासी, परहित की रखता, इक मंसा सी मैं समझ से परे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Get 30% off your first purchase

X